क्या शादी होते ही बेटी हो जाता है हक खत्म, जानिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला Daughter Property Right

By Prerna Gupta

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Daughter Property Right

Daughter Property Right – अक्सर लोगों के मन में एक सवाल उठता है कि क्या शादी के बाद बेटी का अपने मायके की संपत्ति पर कोई हक नहीं रह जाता? बहुत से घरों में ये बात अब भी कही जाती है कि बेटी तो पराया धन होती है, उसका मायके की जमीन-जायदाद से कोई लेना-देना नहीं होता। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। असल में ये सिर्फ एक समाज में फैली गलतफहमी है, जबकि कानून में बेटी को बेटे के बराबर अधिकार दिए गए हैं।

क्या कहता है कानून?

भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 लागू है, जो हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोगों पर लागू होता है। इस कानून के तहत संपत्ति के बंटवारे में बेटा-बेटी दोनों को बराबर का हक दिया गया है। पहले बेटी को ये हक सिर्फ तब तक मिलता था जब तक उसकी शादी नहीं हुई होती थी। लेकिन 2005 में इस कानून में बड़ा बदलाव किया गया, जिसके बाद बेटी चाहे शादीशुदा हो या कुंवारी, वह अपने पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार बन गई।

2005 में आया बड़ा बदलाव

1 सितंबर 2005 को एक नया संशोधन लागू किया गया, जिसमें साफ कहा गया कि बेटी का हक बेटों के बराबर है। मतलब अब वह सिर्फ शादी से पहले नहीं, बल्कि शादी के बाद भी अपने पिता की पैतृक संपत्ति पर पूरा अधिकार रखती है। उसे कोई इससे वंचित नहीं कर सकता।

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शादी के बाद भी हक बरकरार

कई लोग अब भी यह सोचते हैं कि शादी के बाद बेटी अपने ससुराल की हो जाती है, इसलिए उसके मायके की संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं होता। लेकिन कानून ऐसा नहीं मानता। सुप्रीम कोर्ट तक ने कई मामलों में साफ कहा है कि बेटी का हक शादी के बाद भी बना रहता है, और उसे कोई इससे नहीं रोक सकता।

पैतृक और स्वअर्जित संपत्ति में फर्क समझिए

यहां पर एक बात समझना जरूरी है कि संपत्ति दो तरह की होती है – पैतृक और स्वअर्जित। पैतृक संपत्ति वह होती है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अपने आप ट्रांसफर होती है, जैसे दादा की संपत्ति पिता को और फिर बच्चों को।

  • इस तरह की संपत्ति में बेटी को जन्म से ही हिस्सा मिल जाता है।
  • इसमें बेटी का हक शादी के बाद भी खत्म नहीं होता।

दूसरी तरफ, स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने खुद के दम पर कमाई हो। उस पर उसका पूरा हक होता है कि वह उसे अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकता है – बेटे को, बेटी को या किसी और को। अगर पिता ने कोई वसीयत नहीं बनाई है, तो उनकी स्वअर्जित संपत्ति भी उत्तराधिकार कानून के तहत समान रूप से बांटी जाएगी।

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वसीयत बनी तो वही होगी लागू

अगर पिता ने अपनी संपत्ति को लेकर वसीयत बना रखी है, तो फिर वही दस्तावेज मान्य होगा। उसमें जो लिखा है, वही लागू किया जाएगा। लेकिन अगर कोई वसीयत नहीं बनी है, तो फिर बेटा और बेटी दोनों को बराबर हिस्सा मिलेगा।

कानूनी जानकारी की कमी से होते हैं विवाद

हमारे समाज में आज भी बहुत से लोग कानून की सही जानकारी नहीं रखते। इसी वजह से कई बार बेटियों को उनके अधिकार नहीं मिलते और पारिवारिक झगड़े शुरू हो जाते हैं। बेटियों को चाहिए कि वे अपने अधिकारों के बारे में खुद को जागरूक रखें और अगर जरूरत पड़े तो कानूनी मदद लें।

बेटियों के लिए आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम

2005 का संशोधन सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की शुरुआत है। यह बेटियों को न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है, बल्कि उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा भी देता है। अब बेटियां भी अपने हक के लिए आवाज उठा सकती हैं और आत्मनिर्भर बन सकती हैं।

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क्या करें बेटियां?

  • अपने अधिकारों के बारे में जानकारी रखें।
  • अगर कोई उनका हक छीन रहा है, तो चुप न बैठें।
  • जरूरत हो तो वकील या कानूनी सलाहकार से सलाह लें।
  • परिवार में बातचीत और पारदर्शिता रखें, ताकि विवाद की नौबत न आए।

आज की बेटियां पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। ऐसे में उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। कानून उनका साथ दे रहा है, अब जरूरत है कि समाज भी उन्हें बराबरी का दर्जा दे। शादी के बाद भी बेटी का हक उतना ही मजबूत है जितना शादी से पहले था।

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