Daughter Property Rights – पैतृक संपत्ति को लेकर अक्सर परिवारों में विवाद होते रहते हैं, और जब मामला कोर्ट तक पहुंचता है तो कई बार बड़े और ऐतिहासिक फैसले सामने आते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसा ही एक अहम फैसला सुनाया है, जो खासकर बेटियों के अधिकारों से जुड़ा है। कोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। वहीं, अविवाहित और विधवा बेटियों को हकदार बताया गया है। इस फैसले ने काफी चर्चा बटोरी है। आइए जानते हैं इस पूरे मामले को आसान और समझने वाली भाषा में।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला एक तलाकशुदा महिला से जुड़ा है, जिसने अपने पिता की मौत के बाद पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांगा था। महिला ने दावा किया था कि उसके पिता की मौत के बाद उसके भाई और मां ने उससे वादा किया था कि वे उसे हर महीने 45 हजार रुपये देंगे, बशर्ते वह संपत्ति में दावा न करे। कुछ समय तक उसे यह पैसे मिलते भी रहे, लेकिन बाद में देना बंद कर दिया गया। इसके बाद महिला ने कोर्ट में गुहार लगाई कि उसे अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिले, क्योंकि वह तलाकशुदा है और उसका भरण-पोषण होना चाहिए।
कोर्ट का क्या कहना है?
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में साफ कहा कि तलाकशुदा बेटियां अपने पिता की संपत्ति में हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा महिला का भरण-पोषण उसके पूर्व पति की जिम्मेदारी है, और वह कानूनी तौर पर उससे गुजारा भत्ता मांग सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 में तलाकशुदा बेटियों को आश्रित नहीं माना गया है, इसलिए वे अपने पिता की संपत्ति में दावा नहीं कर सकतीं।
अविवाहित और विधवा बेटियों के लिए क्या कहा गया?
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि अविवाहित और विधवा बेटियां अपने पिता की संपत्ति में अधिकार रखती हैं। क्योंकि उनके पास भरण-पोषण का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता, इसलिए उनके लिए यह हक जरूरी माना गया है। अविवाहित और विधवा बेटियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें संपत्ति में हिस्सा दिया जाना चाहिए।
कानूनी अधार क्या है इस फैसले का?
यह फैसला पूरी तरह हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 पर आधारित है। इस धारा में साफ तौर पर नौ श्रेणियों के लोगों को आश्रित माना गया है, जिनमें तलाकशुदा बेटियों का कोई जिक्र नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस कानून की व्याख्या परिस्थितियों के हिसाब से नहीं की जा सकती। अगर कोई तलाकशुदा है, तो उसका सहारा उसका पूर्व पति माना जाएगा, न कि उसके माता-पिता या उनके द्वारा छोड़ी गई संपत्ति।
महिला ने क्यों कहा उसे अधिकार मिलना चाहिए?
महिला ने कोर्ट में अपनी मजबूरी बताई कि उसका तलाक 2001 में हो गया था और उसके बाद से उसके पति का कोई पता नहीं चला। ऐसे में वह गुजारा भत्ता भी नहीं ले सकी। उसने कोर्ट से मांग की कि उसे उसके माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा दिया जाए ताकि वह अपनी जिंदगी आराम से जी सके। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
क्या यह फैसला सभी पर लागू होता है?
यह फैसला एक विशेष मामले के आधार पर आया है, लेकिन इसकी गूंज दूर तक जा सकती है। इसका असर अन्य तलाकशुदा महिलाओं पर भी पड़ सकता है जो अपने पिता की संपत्ति में अधिकार चाहती हैं। हालांकि, यह भी संभव है कि कोई दूसरा मामला सामने आए और कोई नया नजरिया कोर्ट के सामने पेश हो।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले में सुधार की जरूरत है। उनका कहना है कि हर तलाकशुदा महिला की स्थिति एक जैसी नहीं होती। कुछ के पति कहीं लापता होते हैं, कुछ गुजारा भत्ता देने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में उन्हें पिता की संपत्ति से वंचित करना कहीं न कहीं अन्याय की तरह है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि महिलाओं के अधिकारों के नजरिये से यह फैसला पीछे की ओर उठाया गया कदम हो सकता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट में जाएगा मामला?
अभी तक इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई है, लेकिन यदि महिला चाहें तो वह अपील कर सकती हैं। अगर मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा, तो वहां से नई व्याख्या भी सामने आ सकती है जो इस विषय को और साफ कर दे।
यह फैसला दिल्ली हाईकोर्ट का है, जो कानून की व्याख्या के आधार पर सुनाया गया है। इससे यह साफ होता है कि कानून में जो लिखा है, उसी को आधार बनाया जाता है, न कि किसी की निजी परिस्थिति को। लेकिन भविष्य में इस पर नए सिरे से विचार किया जा सकता है।